मराठा साम्राज्य का इतिहास और शासनकाल | Maratha Empire With PDF

आज के इस पोस्ट में मैं आपके साथ मराठा साम्राज्य के इतिहास के बारे मै बताऊंगा और साथ ही मैं मराठा साम्राज्य का इतिहास PDF (History of Maratha Samrajya PDF) नोट्स भी शेयर करूंगा जिसे आप इस पोस्ट के नीचे दिए गये डायरेक्ट लिंक की सहायता से निशुल्क डाउनलोड कर सकते हो।

मराठा साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास पढने के बाद इस पोस्ट में शेयर किये गए pdf को एक बार अवश्य पढ़ें|

Table of Contents

History of Maratha Samrajya PDF: Overview

PDF Nameमराठा साम्राज्य के इतिहास pdf
LanguageHindi
No.of PDFs2
QualityExcellent
Maratha history in hindi pdf 

मराठा साम्राज्य का इतिहास – History of Maratha Quick Overview

बिंदु(Points)जानकारी (Information)
साम्राज्य (Empire)मराठा साम्राज्य
संस्थापक (Founder)शिवाजी भोंसले
मराठा शासनकाल (Maratha Reign)1674 – 1818
अंतिम शासक (Last Emperor)प्रतापसिंह छत्रपति
राजधानियाँ (Capitals)रायगढ़ किला, गिंगी, सतारा, पुणे
मराठा राज्य का दूसरा संस्थापक (Second Founder)बालाजी विश्वनाथ
मराठा राज्य के प्रथम पेशवा (First Peshwa)बालाजी विश्वनाथ
मराठा राज्य के अंतिम पेशवा (Last Peshwa)बाजीराव पेशवा द्वितीय
भाषाएँ (Languages)मराठी और संस्कृत
पतन बाद किसने शासन किया (Who rule after fall)ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी
मराठा साम्राज्य का इतिहास – History of Maratha Empire

Maratha Empire– मराठा साम्राज्य भारत में एक हिंदू साम्राज्य था जो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 19वीं शताब्दी के मध्य तक अस्तित्व में था। इसकी स्थापना शिवाजी भोसले ने की थी, जिन्होंने 1600 के दशक के अंत में खुद को भारत के दक्कन क्षेत्र में एक छोटे मराठा साम्राज्य के शासक के रूप में स्थापित किया था।

Maratha Empire in Hindi - मराठा साम्राज्य का इतिहास
मराठा साम्राज्य का इतिहास – Maratha Empie History

मराठा साम्राज्य का इतिहास – Maratha Empire

मराठा साम्राज्य इतिहास – Maratha Empire History: मराठा साम्राज्य का विस्तार अंततः मध्य और पश्चिमी भारत के अधिकांश हिस्सों में हुआ, और इसके शासक उपमहाद्वीप के कुछ सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गए। मराठा साम्राज्य के मुखिया छत्रपति हुआ करते थे। छत्रपति शाहू जी महाराज और माधवराव प्रथम की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा के हाथों में आ गयी थी। मराठा साम्राज्य अपनी सैन्य सफलताओं, अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों और आधुनिक भारत के विकास में अपने योगदान के लिए जाना जाता है।

मराठा साम्राज्य की स्थापना – Founding of the Maratha Empire

छत्रपति शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj

शिवाजी भोसले मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। उनका जन्म 1627 में पश्चिमी भारतीय राज्य महाराष्ट्र में पुणे शहर के पास शिवनेरी के पहाड़ी किले में हुआ था। शिवाजी शाहजी भोसले के पुत्र थे, जो एक मराठा योद्धा थे, जिन्होंने बीजापुर के आदिल शाही सुल्तानों की सेवा में सेनापति के रूप में कार्य किया था। शिवाजी को सैन्य कला में शिक्षित किया गया था और हथियारों के उपयोग में प्रशिक्षित किया गया था, और वह कम उम्र में ही एक कुशल योद्धा बन गए थे।

शिवाजी ने बाद में रायगढ़ को अपना राजधानी घोषित किया और एक आज़ाद मराठा साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद वे एक से एक लड़ाइयां लड़ते रहे और उन्होंने अपने साम्राज्य को मुघलो से बचाने के लिए लगातार प्रयास किया।

1644 में, 17 साल की उम्र में, शिवाजी ने आदिल शाही सुल्तानों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया और खुद को एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य का शासक घोषित कर दिया। उसने जल्दी से पुणे के आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और सैन्य विजय और रणनीतिक गठजोड़ के माध्यम से अपने राज्य का विस्तार करना शुरू कर दिया। शिवाजी एक शानदार सैन्य रणनीतिकार और एक कुशल प्रशासक थे, और वे एक मजबूत और कुशल सरकार बनाने में सक्षम थे जिसने उनके बढ़ते साम्राज्य को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया।

1674 में लोगो ने शिवाजी को मराठा साम्राज्य के छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप के तक़रीबन 4.1% भाग पर अपना प्रभुत्व जमा लिया था लेकिन इसके बाद भी शिवाजी महाराज तेजी से अपने साम्राज्य का विस्तार करते रहे।

शिवाजी अपने मृत्यु के समय तक में 300 किले, तक़रीबन 40000 की घुड़सवार सेना और 50000 पैदल सैनिको की फ़ौज बना रखी थी और साथ पश्चिमी समुद्री तट तक एक विशाल नौसेना का प्रतिष्ठान भी कर रखा था। समय के साथ-साथ इस मराठा साम्राज्य का विस्तार भी होता गया और इसी के साथ इसके शासक भी बदलते गये।

Maratha Empire History Full Timeline – Chatrapati Shivaji Maharaj vs Mughal Emperor Aurangzeb

मराठा साम्राज्य का विस्तार – Expansion of the Maratha Empire

शिवाजी और उनके उत्तराधिकारियों के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ। मराठों ने एक शक्तिशाली घुड़सवार सेना विकसित की जो दक्कन के पठार के ऊबड़-खाबड़ इलाकों के अनुकूल थी, और उन्होंने इस लाभ का उपयोग अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने और नए क्षेत्रों को जीतने के लिए किया। 1600 के दशक के अंत और 1700 के दशक के प्रारंभ में, मराठों ने मुगल साम्राज्य, आदिल शाही सुल्तानों और जंजीरा के सिद्दी शासकों को हराया और उन्होंने अधिकांश डेक्कन क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया।

मराठों ने पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ सफल अभियानों में भी भाग लिया, जिन्होंने भारत में व्यापारिक उपनिवेश स्थापित किए थे। 1740 के दशक में, मराठों ने पुर्तगालियों को हराया और गोवा सहित पश्चिमी भारत में उनके उपनिवेशों पर कब्जा कर लिया, जो मराठा शक्ति का एक प्रमुख केंद्र बन गया। 1750 और 1760 के दशक में, मराठों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ कई युद्ध लड़े और अंग्रेजों की बेहतर सैन्य तकनीक के बावजूद अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने में सक्षम थे।

Maratha Empire in Hindi - मराठा साम्राज्य का इतिहास
Maratha Empire in Hindi – मराठा साम्राज्य का इतिहास

संभाजी महाराज – Sambhaji Maharaj

शिवाजी महाराज के दो बेटे थे : संभाजी और राजाराम। संभाजी महाराज उनका बड़ा बेटा था, जो दरबारियों के बीच काफी प्रसिद्ध था।

1681 में संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य का सिंहासन संभाला और अपने पिता की नीतियों को अपनाकर वे उन्ही की राह में आगे चल पड़े। संभाजी महाराज ने अपने राज के शुरू में ही पुर्तगाल और मैसूर के चिक्का देवा राया को पराजित कर दिया था।

राजपूत-मराठा गठबंधन और संभाजी महाराज के विस्तार को देखते हुए और उनको हटाने के लिए 1681 में औरंगजेब ने खुद दक्षिण की कमान अपने हाथ में ले ली थी। संभाजी महाराज ने अपने महान दरबार और 5,000,00 की विशाल सेना के साथ मराठा साम्राज्य के विस्तार की शुरुवात की थी और बीजापुर और गोलकोंडा की सल्तनत पर भी मराठा साम्राज्य का ध्वज लहराया था। अपने 8 साल के शासनकाल में उन्होंने मराठाओ को औरंगजेब के खिलाफ एक भी युद्ध या गढ़ हारने नही दिया।

1689 के आस-पास संभाजी महाराज ने अपने सहकारियो को रणनीतिक बैठक के लिए संगमेश्वर में आमंत्रित किया, ताकि मुघल साम्राज्य को हमेशा के लिए खत्म कर सके। लेकिन किसी अपने ही ने उन्हें धोखा दे औरंगजेब को इस बारे बता दिया और गनोजी शिर्के और औरंगजेब के कमांडर मुकर्रब खान ने संगमेश्वर में जब संभाजी महाराज बहुत कम लोगो के साथ होंगे तब आक्रमण करने की बारीकी से योजना बनाई। इससे पहले औरंगजेब कभी भी संभाजी महाराज को पकड़ने में सफल नही हुआ था।

लेकिन इस बार अंततः उसे सफलता मिल ही गयी और 1 फरवरी 1689 को उसने संगमेश्वर में आक्रमण कर संभाजी महाराज को कैदी बना लिया। उनके और उनके सलाहकार कविकलाश को बहादुरगढ़ ले जाया गया, जहाँ औरंगजेब ने मुघलो के खिलाफ विद्रोह करने के कारण 11 मार्च 1689 को मार डाला।

राजाराम और ताराबाई – Rajaram and Tarabai

संभाजी महाराज के मरने के बाद, उनके ही सौतेले भाई राजाराम ने सिंहासन संभाला। लेकिन तबतक मुघलो की रायगढ़ पर घेरा बंदी शुरू हो चुकी थी और इसी सुरक्षा के कारण उन्हें विशालगढ और बाद गिंगी जाना पड़ा। वही से मराठा शूरवीर मुग़ल सैन्य दलों पर छापा मारते थे और इस प्रकार बहुत से किलो को मराठाओ ने दोबारा हासिल कर लिया था। उस समय के कुछ महान शूरवीरो में संताजी घोरपडे, धनाजी जाधव, परशुराम पन्त प्रतिनिधि, शंकरजी नारायण सचीव और मेलगीरी पंडित शामिल थे।

1697 में राजाराम ने औरंगजेब को युद्धविराम की संधि भी दी थी लेकिन औरंगजेब ने मना कर दिया था। 1700 में सिंहगढ़ किले में राजाराम की मृत्यु हो गयी। उसके बाद उनकी विधवा पत्नी ताराबाई अपने बेटे रामराज (शिवाजी द्वितीय) के नाम पर मराठा साम्राज्य को चला रही थी। उन्होंने कुछ ही समय में 1705 के बाद नर्मदा नदी भी पार कर दी और मालवा में प्रवेश कर लिया, ताकि मुघल साम्राज्य पर अपना प्रभुत्व जमा सके।

छत्रपति शाहूजी महाराज – Chatrapati Sahuji Maharaj

1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, संभाजी महाराज के बेटे (शिवाजी के पोते), छत्रपति शाहूजी महाराज को बहादुर शाह प्रथम के द्वारा रिहा कर दिया गया लेकिन उन्हें इस शर्त पर ही रिहा किया गया की वे मुघल कानून का पालन करेंगे। 

तभी 1707 में सतारा और कोल्हापुर राज्य की स्थापना की गयी थी क्योकि उत्तराधिकारी के चलते मराठा साम्राज्य में आपस में ही वाद-विवाद होने लगे थे। लेकिन अंत में शाहूजी को ही मराठा साम्राज्य का नया छत्रपति बनाया गया। 

इसके बाद शाहूजी ने बालाजी विश्वनाथ को नए पेशवा के रूप में नियुक्त किया। शाहूजी के शासनकाल में, रघुजी भोसले ने पूर्व (वर्तमान बंगाल) में मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। सेनापति धाबडे ने पश्चिम में इस साम्राज्य का विस्तार किया। पेशवा बाजीराव और उनके तीन मुख्य पवार (धार), होलकर (इंदौर) और सिंधिया (ग्वालियर) ने उत्तर में विस्तार किया। ये सभी राज्य उस समय मराठा साम्राज्य का ही हिस्सा थे।

पेशवा युग:

इस युग में की शुरुवात पेशवाओ द्वारा किया गया जो की चित्पावन परिवार से संबंध रखते थे। ये लोग पहले मराठा सेनाओ का नियंत्रण करते थे और बाद में वही मराठा साम्राज्य के शासक बन गए। अपने शासनकाल में पेशवाओ ने भारतीय उपमहाद्वीप के ज्यादातर भागो पर अपना प्रभुत्व बना रखा था।

बालाजी विश्वनाथ – Balaji Vishwanath:

1713 में शाहूजी ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ की नियुक्ती की थी और उसी समय से पेशवा सुप्रीम बन गए और शाहूजी महाराज मुख्य व्यक्ति बने रहे।

बालाजी विश्वनाथ की सबसे पहली बड़ी उपलब्धि 1714 में कन्होजो अंग्रे के साथ लानावल की संधि का समापन करना था जो की पश्चिमी समुद्र तट के सबसे शक्तिशाली नौसेना मुखिया में से एक थे। बाद में वे भी मराठा में ही शामिल हो गये।

1719 में मराठाओ की सेना ने दिल्ली पर हल्ला बोल डेक्कन के मुघल गवर्नर सईद हुसैन हाली के मुघल साम्राज्य को परास्त किया। उसी समय पहली बार मुघल साम्राज्य को अपनी कमजोर ताकत का अहसास हुआ था।

बाजीराव प्रथम – Baji Rao 1:

अप्रैल 1720 में बालाजी विश्वनाथ के मरने के बाद उनके बेटे बाजीराव प्रथम की नियुक्ती शाहूजी ने पेशवा के रूप में की। बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के विस्तार को भारतीय उपमहाद्वीप में 3% से 30% पर लाकर खड़ा कर दिया। अप्रैल 1740 में अपनी मृत्यु से पहले तक बाजीराव ने कुल 41 युद्ध लड़े और उनमे से एक भी युद्ध नही हारे।

28 फरवरी 1728 को महाराष्ट्र के नाशिक शहर के पालखेड गाँव में जमीन को लेकर बाजीराव प्रथम और कमर-उद्दीन खान और हैदराबाद के असफजाह प्रथम के बीच युद्ध हुआ जिसमे मराठाओ ने निजाम को पराजित कर दिया। इस युद्ध में बाजीराव प्रथम ने अपने बाहु सैन्य रणनीति की एक झलक पेश कि थी।

1737 में बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में मराठाओ ने दिल्ली के युद्ध में दिल्ली के उपनगरो पर बमवर्षा और छापा मारा। मराठाओ के आक्रमण से मुघलो को बचाने के लिए निज़ाम ने को डेक्कन छोड़ दिया। मुघलो ने इस युद्ध में मराठाओ के सामने पूरी तरह से घुटने टेक दिए थे और इसी के चलते मराठाओ ने मालवा से संधि करके उन्हें राज्य सौप दिया था।

इसके बाद वसई का युद्ध मराठा और पुर्तगाली शासक के बीच हुआ था। यह गाँव मुंबई के उत्तर में 50 किलोमीटर की दुरी पर आता है। इस युद्ध का नेतृत्व बाजीराव के भाई चिमाजी अप्पा ने किया था। इस युद्ध में मराठाओ की विजय बाजीराव के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुई।

बालाजी बाजी राव – Balaji Baji Rao:

बाजीराव का बेटा बालाजी बाजी राव (नानासाहेब) की नियुक्ती शाहूजी महाराज ने दुसरे दरबारियों के विरोध के बावजूद अगले पेशवा के रूप में की।

1740 में मराठा सेना अर्काट में आयी और उन्होंने अर्काट के नवाब दोस्त अली को दमलचेर्री में पराजित किया। इस युद्ध में उनके कई महत्वपूर्ण लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी थी। शुरू में ही विशाल सफलता हासिल करने से मराठा साम्राज्य दक्षिण में भी तेजी से फैला जा रहा था। दमलचेर्री से मराठा अर्काट की तरफ गये और वहा जा कर उन्होंने बिना कुछ किये बड़ी ही आसानी से मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। इसके बाद दिसम्बर 1740 में रघुजी ने त्रीचिनोपोली पर आक्रमण किया। अंत में कैदी बनाने के बाद चंदा साहेब और उनके बेटे को नागपुर भेजा दिया गया।

कर्नाटक के सफल अभियान के बाद त्रिचिनोपोल्ली का युद्ध करके रघुजी भी कर्नाटक से वापिस आ गये और इसके बाद 1741 से 1748 तक उन्होंने बंगाल में छः अभियान चलाए। इसी के चलते रघुजी ओडिशा को भी अपने साम्राज्य में शामिल करने में सफल हुए और देखते देखते मराठा साम्राज्य ने ओडिशा, बंगाल, और बिहार पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया।

इसके बाद 1751 में बंगाल के नवाब ने रघुजी के साथ शांति का सौदा कर लिया और वार्षिक रूप से उन्हें 1.2 मिलियन रुपये देने का दावा भी किया।

इसी समय में राजपुताना शासक भी मराठा साम्राज्य के प्रभुत्व में आ चुके थे।

Maratha Empire in Hindi - मराठा साम्राज्य का इतिहास
Maratha Empire in Hindi – मराठा साम्राज्य का इतिहास

मराठा साम्राज्य सरकार और प्रशासन – Maratha Empire Government and administration

मराठा साम्राज्य सरकार और प्रशासन की एक जटिल प्रणाली के साथ एक संघीय राज्य था। मराठा राजा सर्वोच्च अधिकारी थे, लेकिन उन्हें मंत्रिपरिषद और रईसों की परिषद द्वारा सलाह दी जाती थी। सरकार में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति मराठा पेशवा या प्रधान मंत्री थे, जिनका राज्य के मामलों पर काफी प्रभाव था। मराठा साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक को राजा द्वारा नियुक्त राज्यपाल द्वारा शासित किया गया था। प्रांतों को आगे जिलों में विभाजित किया गया था, जिन्हें स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रशासित किया गया था।

शिवाजी ने अपने समय पर एक प्रसासनिक प्रणाली बनाई थी जिसका नाम ‘अष्टप्रधान’ था। इस प्रणाली मैं कुल आठ मंत्री शामिल थे –

  1. पेशवा (प्रधानमंत्री)
  2. अमात्य (वित्त मंत्री)
  3. सचिव (सचिव)
  4. मंत्री (आंतरिक मंत्री)
  5. सेनापति (कमांडर-इन-चीफ)
  6. सुमंत (विदेश मंत्री)
  7. न्यायादक्ष (मुख्य न्यायाधीश)
  8. पंडितराव (उच्च पुजारी)

मराठा साम्राज्य आर्थिक और सांस्कृतिक उपलब्धियां – Maratha Empire Economic and cultural achievements

मराठा साम्राज्य एक समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से उन्नत समाज था। मराठों ने एक संपन्न व्यापार और वाणिज्य विकसित किया, और उन्होंने माल और लोगों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए सड़कों, बंदरगाहों और नहरों का एक नेटवर्क स्थापित किया। मराठों ने कपड़ा, धातु और जहाज निर्माण सहित उद्योग के विकास को भी प्रोत्साहित किया।

मराठा कला और साहित्य के संरक्षक थे, और उन्होंने एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के विकास का समर्थन किया। मराठा कई महत्वपूर्ण मंदिरों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे, और उन्होंने कला और साहित्य के कार्यों को कमीशन किया जो भारतीय संस्कृति के स्थायी स्थल बन गए हैं। मराठों ने भी अपने विषयों की शिक्षा का समर्थन किया, और उन्होंने ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की।

मराठा साम्राज्य के दौरान असंतुलन – Disbalances during maratha empire

आंतरिक संघर्षों और बाहरी खतरों के संयोजन के कारण 1700 के दशक के अंत और 1800 के प्रारंभ में मराठा साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। उत्तराधिकार संघर्षों और गुटीय विवादों की एक श्रृंखला से मराठा कमजोर हो गए थे, जिसके कारण राज्य का विखंडन हुआ। मराठों को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ा, जो भारत में अपना प्रभाव बढ़ा रही थी। 1803 में, अंग्रेजों ने दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध में मराठों को हरा दिया, और मराठा साम्राज्य ने अपना अधिकांश क्षेत्र और शक्ति खो दी।

पानीपत का तीसरा युद्ध – Third Battle of Panipat

1759 में सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में मराठाओ ने उत्तर भारत में अफ़ग़ान की वापसी के जवाब में अपनी विशाल सेना उत्तर की तरफ भेजी। भाऊ की सेना को दुसरे मराठो शासको जैसे होलकर, सिंधिया, गायकवाड और गोविंद पन्त बुंदेले की सेनाओ के वजह से और ज्यादा ताकत मिली।

देखते देखते मराठाओ ने कुल 1,00,000 सैनिको की विशाल सेना तैयार कर ली ताकि वे दिल्ली की मुघल सल्तनत को दोबरा हासिल कर सके।

पहले भी कई बार युद्ध लड़े जाने के कारण दिल्ली काफी प्रभावित हो चुका था। इस युद्ध में मराठाओ ने पेशवा के बेटे विश्वासराव को मुघल सिंहासन पर बैठा दिया और 1760 में निज़ाम को हराने के बाद मराठा सैनिको की ताकत और भी बढ़ गई और उनका साम्राज्य भी 28,00,000 किलोमीटर एकर तक फ़ैल गया।

भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्र में मराठा शक्ति के विस्तार के कारण अहमद शाह दुर्रानी के दरबार में बड़ा चिंता का विषय बन गया।

उस समय औध के अहमद शाह दुर्रानी ने मराठाओ को दिल्ली से निकालने के लिए वध के नवाब सुजाउद्दौला और रोहिल्ला सरदार नजीब उददोला के साथ हाथ मिला लिया। जिसके चलते 14 जनवरी 1761 को मराठा और मुस्लिम शासको के बीच विशाल युद्ध हुआ जिसे पानीपत का तीसरा युद्ध कहते हैं। इस युद्ध में मराठाओ को हार का सामना करना पड़ा।

इसका सबसे बड़ा कारण जाट और राजपूतों द्वारा मराठाओ की सहायता नही करना था। इस परिणाम के बाद बहुत से शासको ने मराठाओ की सहायता करने से इंकार कर दिया था।

इतिहासकारों ने भी हिंदू शाशको की काफी आलोचना की। उस समय जहाँ मुस्लिम शासक अब जात के नाम पर एक हो रहे थे वही हिन्दू शासक एक-दूजे से अलग होने लगे थे। इसके बाद मराठाओ ने भी जाट और राजपुतो पर कडवे शब्दों का प्रहार किया और इसके चलते दोनों के बीच मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न हुई।

इसके बाद भरतपुर के राजा सूरज मल ने भी मराठाओ का त्याग कर दिया और कुछ राजपूत शासको ने तो मराठी सेनाओ से अपने सैनिको को वापस बुला लिया। इन सभी परिस्थितियों के चलते भाऊ की सेना काफी कमजोर पड़ चुकी थी।

मराठा साम्राज्य का पुनरुत्थान (Maratha Empire Resurrection)

पेशवा माधवराव प्रथम – Peshwa Madhavrao 1:

पेशवा माधवराव प्रथम एक दूरदर्शी राजा थे जिन्होंने महान उथल-पुथल और परिवर्तन के समय मराठा साम्राज्य की कमान संभाली थी। उनकी महत्वाकांक्षा एक सामंजस्यपूर्ण और शक्तिशाली बल बनाने की थी जो मराठों को शेष भारत पर अपना प्रभुत्व जमाने में मदद करे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, उन्होंने निज़ाम को जीतने के लिए दक्षिण की ओर अपनी सेना का नेतृत्व किया, और बाजीराव, सिंधिया और होल्कर सहित अपने सबसे कुशल योद्धाओं को उत्तर की ओर साम्राज्य का और भी विस्तार करने के लिए भेजा। उनके मार्गदर्शन में, मराठा साम्राज्य और भी मजबूत हुआ।

पेशवा माधवराव प्रथम के नेतृत्व में, मराठा साम्राज्य हैदराबाद, मैसूर और बंगाल के मुगल प्रांतों के खिलाफ अपनी लड़ाई में विजयी हुआ। इन विजयों ने मराठों को अपने प्रभुत्व का दावा करने और दिल्ली, हैदराबाद, बिहार, ओडिशा, पंजाब, हैदराबाद, मैसूर, उत्तर प्रदेश और राजपुताना सहित विभिन्न क्षेत्रों से चौथ का एक रूप इकट्ठा करने की अनुमति दी। इस समय के दौरान मराठा साम्राज्य के सैन्य कौशल और क्षेत्रीय विस्तार ने दक्षिण एशिया में एक दुर्जेय शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई।

हैदराबाद के नवाब, सफदरजंग के नेतृत्व में, मराठों ने 1752 में अफगान रोहिल्लाओं को जीतने के लिए प्रस्थान किया। मराठा सेना ने सफलतापूर्वक रोहिलखंड क्षेत्र पर अपना शासन स्थापित किया, जो वर्तमान में उत्तरी उत्तर प्रदेश में स्थित है, और कई मुगलों के साथ गठजोड़ किया। वजीर और सफदरजंग सहित शासक। यह मराठा इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था क्योंकि उन्होंने अपने क्षेत्र का विस्तार करना और अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करना जारी रखा।

अफगान रोहिल्लाओं को हराने में उनकी सहायता के बदले में, मराठा शासकों ने पंजाब और सिंध के क्षेत्रों से चौथ (कर) वसूल किया, और अजमेर और आगरा पर मराठा आधिपत्य भी प्रदान किया। इसने मराठा प्रभाव और क्षेत्र के महत्वपूर्ण विस्तार को चिह्नित किया।

1758 में, मराठों ने उत्तर पश्चिम में अपना विस्तार जारी रखा, अपनी सीमा को अफ़ग़ानिस्तान तक धकेल दिया। उन्होंने अहमद शाह अब्दाली की अफगान सेना को आसानी से हरा दिया, जिसकी संख्या लगभग 25,000 से 30,000 सैनिकों की थी और जिसका नेतृत्व अहमद शाह दुर्रानी के पुत्र तैमूर शाह कर रहे थे। इसने क्षेत्र में एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में मराठों की स्थिति को और मजबूत किया।

औपनिवेशिक युग के दौरान, एक प्रमुख मराठा नेता, महादजी सिंधिया ने उत्तरी भारत में मराठा साम्राज्य का पुनर्गठन किया। हालांकि, अंततः उन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान साम्राज्य खो दिया, जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण सैन्य संघर्ष था। इस झटके के बावजूद, मराठा भारतीय राजनीति में एक शक्तिशाली शक्ति बने रहे और इस क्षेत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।

मराठा साम्राज्य का पतन (Fall of Maratha Empire)

बंगाल के नवाब को हराने के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उत्तरी भारत में एक मजबूत उपस्थिति प्राप्त की, जहाँ वे मराठों के साथ संघर्ष में आ गए। 1803 में “दिल्ली की लड़ाई” में जनरल लेक के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना ने मराठों को हराया था। इसने दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) की शुरुआत को चिह्नित किया, जिसके दौरान मराठों को आर्थर वेलेस्ली के तहत ब्रिटिश सेना द्वारा पराजित किया गया था। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप, अंग्रेजों के पक्ष में कई संधियों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे मराठा शक्ति और प्रभाव में और कमी आई।

How British Destroyed Maratha Empire? | Anglo Maratha Wars | Dhruv Rathee

तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान मराठों को अंततः अंग्रेजों द्वारा पराजित किया गया, जिसने मराठा शासन के अंत को चिह्नित किया। इसने भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया, क्योंकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस क्षेत्र पर अपनी शक्ति और नियंत्रण को मजबूत किया।

मराठा साम्राज्य की विरासत – Legacy of the Maratha Empire

मराठा साम्राज्य ने भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और इसकी विरासत को आज भी देखा जा सकता है। मराठों ने आधुनिक भारत के विकास में कई तरह से योगदान दिया, जिसमें उनका सैन्य कौशल, उनकी आर्थिक उपलब्धियां और उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियां शामिल हैं। मराठों ने महाराष्ट्र के आधुनिक राज्य की नींव भी रखी, जो भारत में सबसे समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से जीवंत राज्यों में से एक है। मराठा साम्राज्य को भारतीय इतिहास में एक स्वर्ण युग के रूप में याद किया जाता है, और इसकी विरासत भारत के लोगों को प्रेरित और प्रभावित करती है।

मराठा साम्राज्य की राजनीतिक और सामाजिक संरचना – Political and social structures of the Maratha Empire

मराठा साम्राज्य सरकार और प्रशासन की एक अच्छी तरह से विकसित प्रणाली के साथ एक जटिल और उच्च संगठित समाज था। मराठा राजा साम्राज्य का सर्वोच्च शासक था, लेकिन उसे मंत्रिपरिषद और रईसों की परिषद द्वारा सलाह दी जाती थी। मराठा पेशवा, या प्रधान मंत्री, ने सरकार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राज्य के मामलों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार थे। मराठा साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक को राजा द्वारा नियुक्त राज्यपाल द्वारा शासित किया गया था। प्रांतों को आगे जिलों में विभाजित किया गया था, जिन्हें स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रशासित किया गया था।

मराठा साम्राज्य एक सामंती समाज था, जिसमें सामाजिक स्थिति और धन के आधार पर रैंकों और विशेषाधिकारों का पदानुक्रम था। मराठा शासक वर्ग अमीरों से बना था, जिनके पास भूमि थी और वे कई प्रकार के विशेषाधिकारों और छूटों का आनंद लेते थे। मराठा किसान सबसे बड़ा सामाजिक वर्ग था, और वे भूमि पर खेती करने और शासक वर्ग को कर चुकाने के लिए जिम्मेदार थे। मराठा साम्राज्य में व्यापारियों, कारीगरों और अन्य शहरी निवासियों की एक बड़ी और विविध आबादी भी थी, जिन्होंने साम्राज्य की अर्थव्यवस्था और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मराठा समाज में महिलाओं की भूमिका – Role of women in Maratha society

मराठा साम्राज्य में महिलाओं ने अपनी सामाजिक स्थिति और अपनी पारिवारिक परिस्थितियों के आधार पर कई तरह की भूमिकाएँ निभाईं। मराठा शासक वर्ग पुरुषों और महिलाओं दोनों से बना था, और शासक वर्ग की महिलाओं ने कई प्रकार के विशेषाधिकारों और अवसरों का आनंद लिया। मराठा रईसों की बेटियों को अक्सर कला और साहित्य में शिक्षित और प्रशिक्षित किया जाता था, और उन्होंने साम्राज्य के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मराठा रईसों की पत्नियाँ अक्सर राजनीतिक रूप से प्रभावशाली थीं, और उन्होंने अपने घरों के प्रबंधन और अपने बच्चों के पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मराठा किसानों और शहरी वर्गों की महिलाओं के पास भूमिकाओं और अवसरों की एक सीमित सीमा थी। इन वर्गों की कई महिलाएँ घरेलू कार्यों के लिए जिम्मेदार थीं, जैसे खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों की देखभाल करना, और शिक्षा या सार्वजनिक जीवन तक उनकी पहुँच बहुत कम थी। हालाँकि, इन वर्गों की कुछ महिलाएँ अपने चुने हुए व्यवसायों, जैसे व्यापारियों, कारीगरों या विद्वानों में सफलता प्राप्त करने में सक्षम थीं। सामान्य तौर पर, मराठा समाज में महिलाओं की स्थिति उनकी सामाजिक स्थिति और उनकी पारिवारिक परिस्थितियों से निर्धारित होती थी, और मराठा साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के लिए उपलब्ध भूमिकाओं और अवसरों में काफी भिन्नता थी।

मराठों के विदेशी संबंध – Foreign relations of the Marathas

मराठा साम्राज्य भारत में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति था, और इसके अपने पड़ोसियों और विदेशी शक्तियों के साथ जटिल और विविध संबंध थे। मराठा मुगल साम्राज्य, आदिल शाही सुल्तानों, जंजीरा के सिद्दी शासकों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सहित अन्य के साथ युद्धों और कूटनीतिक वार्ताओं की एक श्रृंखला में शामिल थे।

मराठा इन शक्तियों के खिलाफ अपने सैन्य अभियानों में आम तौर पर सफल रहे, और वे अपने प्रतिद्वंद्वियों की बेहतर सैन्य तकनीक के बावजूद अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने में सक्षम थे। मराठा पुर्तगाली, डच और ब्रिटिश सहित कई विदेशी शक्तियों के साथ व्यापार और राजनयिक संबंध स्थापित करने में भी सक्षम थे। मराठों ने भारत के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके विदेशी संबंधों ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मराठा काल की सांस्कृतिक और बौद्धिक उपलब्धियां – Cultural and intellectual achievements of the Maratha period

मराठा साम्राज्य एक सांस्कृतिक रूप से उन्नत और बौद्धिक रूप से जीवंत समाज था, और यह कई महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और बौद्धिक उपलब्धियों के लिए जिम्मेदार था। मराठा कला और साहित्य के संरक्षक थे, और उन्होंने एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परंपरा के विकास का समर्थन किया। मराठा कई महत्वपूर्ण मंदिरों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे, और उन्होंने कला और साहित्य के कार्यों को कमीशन किया जो भारतीय संस्कृति के स्थायी स्थल बन गए हैं।

मराठों ने भी अपने विषयों की शिक्षा का समर्थन किया, और उन्होंने ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की। मराठा साहित्य, इतिहास, विज्ञान, गणित और दर्शन सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला में रुचि रखते थे, और उन्होंने अपने न्यायालयों और विश्वविद्यालयों में इन विषयों के अध्ययन और चर्चा को प्रोत्साहित किया। मराठा काल महान बौद्धिक गतिविधियों का समय था, और इसमें कई उल्लेखनीय विद्वानों और लेखकों का उदय हुआ जिन्होंने साहित्य, विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

मराठा साम्राज्य का समकालीन महत्व – Contemporary significance of the Maratha Empire

आधुनिक भारत के इतिहास और संस्कृति में मराठा साम्राज्य का महत्वपूर्ण स्थान है। मराठा साम्राज्य को भारतीय इतिहास में एक स्वर्ण युग के रूप में याद किया जाता है, और इसकी विरासत भारत के लोगों को प्रेरित और प्रभावित करती है। मराठों को महान सैन्य नेताओं, सांस्कृतिक संरक्षकों और प्रशासकों के रूप में याद किया जाता है, और उनकी उपलब्धियों को साहित्य, कला और लोकप्रिय संस्कृति में मनाया जाता है।

महाराष्ट्र के आधुनिक राज्य को आकार देने में अपनी भूमिका के कारण मराठा साम्राज्य समकालीन भारत में भी महत्वपूर्ण है। मराठा साम्राज्य महाराष्ट्र के आधुनिक राज्य का अग्रदूत था, जो भारत में सबसे समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से जीवंत राज्यों में से एक है। मराठा साम्राज्य ने आधुनिक महाराष्ट्र के विकास की नींव रखी, और इसका प्रभाव अभी भी राज्य की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और राजनीति में देखा जा सकता है।

Download Maratha Empire History in Hindi PDF मराठा साम्राज्य का इतिहास PDF

नीचे दिए गए डाउनलोड  बटन पर क्लिक करके आप मराठा साम्राज्य के सम्पूर्ण इतिहास को पीडीऍफ़ नोट्स के रूप में डाउनलोड कर सकते हो।

निष्कर्ष – Conclusion

मराठा साम्राज्य 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से 19वीं शताब्दी के मध्य तक भारत में एक प्रमुख शक्ति था। मराठा साम्राज्य की स्थापना शिवाजी भोसले ने की थी, जिन्होंने 1600 के दशक के अंत में खुद को भारत के दक्कन क्षेत्र में एक छोटे मराठा साम्राज्य के शासक के रूप में स्थापित किया था। मराठा साम्राज्य का विस्तार अंततः मध्य और पश्चिमी भारत के अधिकांश हिस्सों में हुआ, और इसके शासक उपमहाद्वीप के कुछ सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गए। मराठा साम्राज्य अपनी सैन्य सफलताओं, अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों और आधुनिक भारत के विकास में अपने योगदान के लिए जाना जाता है। मराठा साम्राज्य का आधुनिक भारत के इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है, और इसकी विरासत उपमहाद्वीप के लोगों को प्रेरित और प्रभावित करती है।

4.9/5 - (12 votes)

Leave a Comment